Friday, February 28, 2014

क्या आपको लगता है शिवरात्रि पर दूध फ़ालतू फिकता है ? जानिए वैज्ञानिक कारण |

क्या आपको भी ओ माय गॉड जैसी अमेरिकन फण्ड से बनी फिल्म को देखकर ये लगता है के महाशिवरात्रि पर दूध की बहुत बर्बादी होती है तथा हिन्दू धर्म खराब है ................जानिए वैज्ञानिक कारण 


यहाँ दो पात्र हैं : एक है भारतीय और एक है इंडियन ! आइए देखते हैं दोनों में क्या बात होती है !

इंडियन : ये शिव रात्रि पर जो तुम इतना दूध चढाते हो शिवलिंग पर, इस से अच्छा तो ये हो कि ये दूध जो बहकर नालियों में बर्बाद हो जाता है, उसकी बजाए गरीबों मे बाँट दिया जाना चाहिए ! तुम्हारे शिव जी से ज्यादा उस दूध की जरुरत देश के गरीब लोगों को है. दूध बर्बाद करने की ये कैसी आस्था है ?

भारतीय : सीता को ही हमेशा अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है, कभी रावण पर प्रश्न चिन्ह क्यूँ नहीं लगाते तुम ?

इंडियन : देखा ! अब अपने दाग दिखने लगे तो दूसरों पर ऊँगली उठा रहे हो ! जब अपने बचाव मे कोई उत्तर नहीं होता, तभी लोग दूसरों को दोष देते हैं. सीधे-सीधे क्यूँ नहीं मान लेते कि ये दूध चढाना और नालियों मे बहा देना एक बेवकूफी से ज्यादा कुछ नहीं है !

भारतीय : अगर मैं आपको सिद्ध कर दूँ की शिवरात्री पर दूध चढाना बेवकूफी नहीं समझदारी है तो ?

इंडियन : हाँ बताओ कैसे ? अब ये मत कह देना कि फलां वेद मे ऐसा लिखा है इसलिए हम ऐसा ही करेंगे, मुझे वैज्ञानिक तर्क चाहिएं.

भारतीय : ओ अच्छा, तो आप विज्ञान भी जानते हैं ? कितना पढ़े हैं आप ?

इंडियन : जी, मैं ज्यादा तो नहीं लेकिन काफी कुछ जानता हूँ, एम् टेक किया है, नौकरी करता हूँ. और मैं अंध विशवास मे बिलकुल भी विशवास नहीं करता, लेकिन भगवान को मानता हूँ.

भारतीय : आप भगवान को मानते तो हैं लेकिन भगवान के बारे में जानते नहीं कुछ भी. अगर जानते होते, तो ऐसा प्रश्न ही न करते ! आप ये तो जानते ही होंगे कि हम लोग त्रिदेवों को मुख्य रूप से मानते हैं : ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी (ब्रह्मा विष्णु महेश) ?

इंडियन : हाँ बिलकुल मानता हूँ.

भारतीय : अपने भारत मे भगवान के दो रूपों की विशेष पूजा होती है : विष्णु जी की और शिव जी की ! ये शिव जी जो हैं, इनको हम क्या कहते हैं - भोलेनाथ, तो भगवान के एक रूप को हमने भोला कहा है तो दूसरा रूप क्या हुआ ?

इंडियन (हँसते हुए) : चतुर्नाथ !

भारतीय : बिलकुल सही ! देखो, देवताओं के जब प्राण संकट मे आए तो वो भागे विष्णु जी के पास, बोले "भगवान बचाओ ! ये असुर मार देंगे हमें". तो विष्णु जी बोले अमृत पियो. देवता बोले अमृत कहाँ मिलेगा ? विष्णु जी बोले इसके लिए समुद्र मंथन करो !

तो समुद्र मंथन शुरू हुआ, अब इस समुद्र मंथन में कितनी दिक्कतें आई ये तो तुमको पता ही होगा, मंथन शुरू किया तो अमृत निकलना तो दूर विष निकल आया, और वो भी सामान्य विष नहीं हलाहल विष !
भागे विष्णु जी के पास सब के सब ! बोले बचाओ बचाओ !

तो चतुर्नाथ जी, मतलब विष्णु जी बोले, ये अपना डिपार्टमेंट नहीं है, अपना तो अमृत का डिपार्टमेंट है और भेज दिया भोलेनाथ के पास !
भोलेनाथ के पास गए तो उनसे भक्तों का दुःख देखा नहीं गया, भोले तो वो हैं ही, कलश उठाया और विष पीना शुरू कर दिया !
ये तो धन्यवाद देना चाहिए पार्वती जी का कि वो पास में बैठी थी, उनका गला दबाया तो ज़हर नीचे नहीं गया और नीलकंठ बनके रह गए.

इंडियन : क्यूँ पार्वती जी ने गला क्यूँ दबाया ?

भारतीय : पत्नी हैं ना, पत्नियों को तो अधिकार होता है .. किसी गण की हिम्मत होती क्या जो शिव जी का गला दबाए......अब आगे सुनो
फिर बाद मे अमृत निकला ! अब विष्णु जी को किसी ने invite किया था ????
मोहिनी रूप धारण करके आए और अमृत लेकर चलते बने.

और सुनो -
तुलसी स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है, स्वादिष्ट भी, तो चढाई जाती है
कृष्ण जी को (विष्णु अवतार).

लेकिन बेलपत्र कड़वे होते हैं, तो चढाए जाते हैं भगवान भोलेनाथ को !

हमारे कृष्ण कन्हैया को 56 भोग लगते हैं, कभी नहीं सुना कि 55 या 53 भोग लगे हों, हमेशा 56 भोग !
और हमारे शिव जी को ? राख , धतुरा ये सब चढाते हैं, तो भी भोलेनाथ प्रसन्न !

कोई भी नई चीज़ बनी तो सबसे पहले विष्णु जी को भोग !
दूसरी तरफ शिव रात्रि आने पर हमारी बची हुई गाजरें शिव जी को चढ़ा दी जाती हैं......

अब मुद्दे पर आते हैं........इन सबका मतलब क्या हुआ ???

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विष्णु जी हमारे पालनकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का रक्षण-पोषण होता है वो विष्णु जी को भोग लगाई जाती हैं !
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और शिव जी ?

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शिव जी संहारकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का नाश होता है, मतलब जो विष है, वो सब कुछ शिव जी को भोग लगता है !
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इंडियन : ओके ओके, समझा !

भारतीय : आयुर्वेद कहता है कि वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ होती हैं और श्रावण के महीने में वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं. श्रावण के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है. इस वात को कम करने के लिए क्या करना पड़ता है ?
ऐसी चीज़ें नहीं खानी चाहिएं जिनसे वात बढे, इसलिए पत्ते वाली सब्जियां नहीं खानी चाहिएं !

और उस समय पशु क्या खाते हैं ?

इंडियन : क्या ?

भारतीय : सब घास और पत्तियां ही तो खाते हैं. इस कारण उनका दूध भी वात को बढाता है ! इसलिए आयुर्वेद कहता है कि श्रावण के महीने में (जब शिवरात्रि होती है !!) दूध नहीं पीना चाहिए.
इसलिए श्रावण मास में जब हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था तो लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने मे दूध विष के सामान है, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, इस समय दूध पिएंगे तो वाइरल इन्फेक्शन से बरसात की बीमारियाँ फैलेंगी और वो दूध नहीं पिया करते थे !
इस तरह हर जगह शिव रात्रि मनाने से पूरा देश वाइरल की बीमारियों से बच जाता था ! समझे कुछ ?

इंडियन : omgggggg !!!! यार फिर तो हर गाँव हर शहर मे शिव रात्रि मनानी चाहिए, इसको तो राष्ट्रीय पर्व घोषित होना चाहिए !

भारतीय : हम्म....लेकिन ऐसा नहीं होगा भाई कुछ लोग साम्प्रदायिकता देखते हैं, विज्ञान नहीं ! और सुनो. बरसात में भी बहुत सारी चीज़ें होती हैं लेकिन हम उनको दीवाली के बाद अन्नकूट में कृष्ण भोग लगाने के बाद ही खाते थे (क्यूंकि तब वर्षा ऋतू समाप्त हो चुकी होती थी). एलोपैथ कहता है कि गाजर मे विटामिन ए होता है आयरन होता है लेकिन आयुर्वेद कहता है कि शिव रात्रि के बाद गाजर नहीं खाना चाहिए इस ऋतू में खाया गाजर पित्त को बढाता है !
तो बताओ अब तो मानोगे ना कि वो शिव रात्रि पर दूध चढाना समझदारी है ?

इंडियन : बिलकुल भाई, निःसंदेह ! ऋतुओं के खाद्य पदार्थों पर पड़ने वाले प्रभाव को ignore करना तो बेवकूफी होगी.

भारतीय : ज़रा गौर करो, हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है ! ये इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारी परम्पराओं को समझने के लिए जिस विज्ञान की आवश्यकता है वो हमें पढ़ाया नहीं जाता और विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जा रहा है उस से हम अपनी परम्पराओं को समझ नहीं सकते !

जिस संस्कृति की कोख से मैंने जन्म लिया है वो सनातन (=eternal) है, विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें !

(और अंतिम बात आज भारत मे प्रति बर्ष 2 करोड़ गायों का कत्ल कर मांस का निर्यात किया जाता वो जिंदा रहे तो ये 2 करोड़ गाय जिंदा रहे तो वर्ष का कितने करोड़ लीटर दूध मिलेगा लेकिन इस पर कोई सवाल नहीं उठाएगा )



शुभम वर्मा 
स्वदेशी युवा स्वाभिमान 
आज़ाद गुरुकुल 



यहाँ मौजूद कुछ आंकड़ो के लिए फेसबुक मित्रों का साभार 

Wednesday, February 26, 2014

आदिवासी संस्कृति या आधुनिक विकास |

-: आदिवासियों की संस्कृति  :-

  आदिवासियों की खुदकी एक अपनी सभ्यता और संस्कृति है जिसमे वह जीते हैं | उनका एक तौर तरीका है , उनका रहन सहन खुदका है , भाषा है बोली है तथा अपना एक अलग तरीका है जीवन को जीने तथा समझने का , वो जिस हालत में हैं वो खुश हैं उनके अपने स्कूल या शिक्षा तंत्र हैं , उनके खुदके खेल या प्रथाएं हैं, खुदके ही देवी देवता हैं तथा खुद की ही परंपरा और सभ्यता है | इसी तरह सदियों से जंगल में रहते हुए उन्होंने खुद का ही एक स्वास्थ्य का या उपचार करने का तंत्र भी विकसित किया है जो की उन तथाकथित विकसित सभ्यताओं के तंत्र  से कही अधिक विकसित है जो विदेशी आक्रान्ताओं के हमलों से निरंतर बदलती रही हैं  | उनके स्वास्थ्य तंत्र में वो सर्पदंश , हड्डी जोड़ , कैंसर , मधुमेह , चर्मरोग इत्यादि जैंसी कई बीमारियों का इलाज करते हैं तथा इन सभी बीमारियों को जड़ से मिटा देने वाली अदभुत जड़ी बूटियां उनके पास जंगलों में मौजूद हैं |

                 
    अब दिक्कत कहाँ आ रही है , जब सब कुछ मौजूद है तो | दिक्कत है पड़े लिखे लोगों के साथ जिनसे ही हम जैंसा कोई पड़ा लिखा शहरी वहां पहुँचता है  - अपने अज्ञानवश कहिये या मुर्खतावश कहने लगता है के - ये तो पिछड़े हैं यहाँ स्कुल नहीं हैं, यहाँ शोपींग मोल नहीं हैं , यहाँ डॉक्टर नहीं हैं , कपडे नहीं है , टीवी नहीं है , सड़के नहीं हैं ये सब बहुत दुखी हैं | इनका विकास करना है , इनका विकास करना है यहाँ कंपनियां लाओ , डोक्टर लाओ, इन झोलाछाप वैद्यों को भगाओ, या जंगल काट के सीमेंट की सड़कें बनवाओ और यदि ये पढ़े लिखे महाशय थोड़े अमीर या रसूखदार हों तो सारी सरकारी मशीनरी इनकी सेवा करने में लग जाती है तथाकथित विकास करने ,और इससे होता ये है  के पहले जंगल काटते हैं ,फिर जड़ी बूटियां, फिर जानवर..... फिर कंपनियां आकर पर्यावरण तथा नदियों पर भी अपना कब्ज़ा जमा लेती हैं और उन्हें प्रदूषित कर देती हैं और हम अंग्रेजी स्कुल खोल कर बच्चों को भी उनकी सभ्यता और संस्कृति से दूर करके किसी बड़े शहर में बेरोजगार घुमने के लिए तैयार कर देते हैं फिर वहां जंगल में बनी कंपनियों में सारे शहर के पढ़े लिखे लोग रोजगार करते हैं, तथा जिनका विकास करने के लिए ये सब हुआ था वो ख़त्म हो जा जाते हैं या वहां से पलायन करने के लिए मजबूर हो जाते हैं |

क्या यही विकास है ?????

मुझे नहीं पता यदि आपको पता चले तो मुझे भी बताएं .............



शुभम वर्मा 

theshubhamhindi@gmail.com

क्या खाओगे रोटी या कंप्यूटर ?

खाने के लिए रोटी की ज़रूरत होती है कंप्यूटर की नहीं??





आप लोग सोच रहे हैं ये क्या पागलपन की बात लिखी है कोई कंप्यूटर कब खाता या खिलाता है !

इसे आगे पढिये आप खुद जान जायेंगे क्या हो रहा है इस देश में ! जैंसा की हम सभी जानते हैं के हमारा देश हमेशा से कृषि प्रधान रहा है और हमारी देश का आधे से ज्यादा धन या अर्थव्यवस्था कृषि से ही आती है ! पर आज हमें खाने की चीज़े महंगे दामो पर मिल रही है ! लगभग हर फल या सब्जी में मिलावट है यहाँ तक के गाए के दूध तक में मिलावट ! जो फल या सबजिया पहले कभी हम मुफ्त में बाट दिया करते थे आज खरीद कर नहीं मिल रही क्यों ??????

इसका कारण जानना चाहते हैं :- ये एक बहुत बड़ा मुद्दा और समस्या है जिसे आज में उठा रहा हूँ , इसलिए ध्यान से पढियेगा इसे क्योंकि अगर आज इस चीज़ पर देश में ध्यान नहीं दिया गया तो हमारा सारा देश साथ ही कई पडोसी देश भी, जो एसा कर रहे हैं, भूखे मर जायेंगे |


ये सब किसी पार्टी के कारण नहीं हमारी सोच के कारण हो रहा है ! हम देश की तरक्की के नाम पर अपना ही नुकसान कर रहे हैं और ये ऐसे हो रहा है, के ये सारे बड़े बिल्डर्स ने अपना काम शहरों में पूरा कर लिया अब उनका धंधा शहर में खत्म होने लगा , तो उन्होंने गाँव का रुख किया है | आज सारे बड़े शहर चाहे वो मुंबई, पुणे हो या बंगलोर और दिल्ली सब आस पास के छोटे छोटे गाँव से मिलकर बने हैं, और सारे गाँव में किसानो की जमीनों को बिल्डर्स ने लालच देकर या डरा धमकाकर खरीद लिया और नेताओं ने भी तरक्की और विकास  के नाम पर खेतो को ख़त्म करके वह बिल्डिंग्स बनाने दी और धीरे धीरे भारत के खेत ख़त्म होने लगे न ही सिर्फ खेत साथ ही किसान भी क्योंकि .....


हमारी गन्दी सोच है के जो सूट पहना है या tie लगाया है वो महान है और ज्ञानवान है  और  धोती पहनने वाले लोग मुर्ख है बस इसी सोच के कारण आज किसान अपने बेटों को किसान नहीं बना रहे बल्कि इंजीनियर या डोक्टर बना रहे हैं और वो सभी बाद मे बेरोजगार घूमते हैं ???


हर किसान आज शहर जाके कंप्यूटर और लैपटॉप और सूट लेना चाहता है और खेत में काम नहीं करना चाहता क्योंकि हम उसे वह सम्मान नहीं देते!


एक गरीब किसान जो अपने दिन रात एक करके हमारे लिए फसल उगाता है अनाज उगाता  है,  हम उसे  इज्ज़त नहीं देते यहाँ तक के  बस या ट्रेन में अपने पास तक नहीं बैठने देते  और कोई कंप्यूटर इंजिनियर या सूट पहना MBA हो जो कंप्यूटर या लैपटॉप लिया हो ,उसके पास सब बैठते और चाहे वो कितना भी गधा हो उसकी इज्ज़त हैं | जबकि वह या तो आपको ख़राब सामान बेचकर जा रहा है या विदेशी कंपनी को भारत का धन लूट  कर भेज रहा है, तब भी किसान से ज्यादा इज्ज़त उसे देंगे क्योंकि वह अंग्रेजो वाले कपडे पहनता है ना  ?????? 

वाह शर्म आनी  चाहिए हमे अपने आप पर .......


क्या सिर्फ सूट पहनने या शहर में रहने से ही ज्ञान आता है , अरे हमारे  देश में तो 'सादा जीवन उच्च विचार' की संस्कृति है , और लाखों वर्षो से यहाँ के साधू-संत  जंगलों में ज्ञान प्राप्त करते आये है, किसी विदेशी स्कूल में या शहर में नहीं , बल्कि उन महान ऋषियों ने हमेशा इन बेवकूफ शहर वालों को ज्ञान दिया है , आज हम जिस अमेरिका का अनुसरण कर रहे हैं वहां आज भी  विवेकानंदा के और महिर्षि योगी या ओशो या बाबा रामदेव के कई चेले हैं, किसी भारतीय mba के नहीं  क्यों????


क्योंकि ज्ञान सिर्फ computer चलाना और अंग्रेजी आना नहीं होता , और अगर इन पड़े लिखे लोगो को इनकी पढाई का ज्ञान है तो किसानो को भी धर्म का इंसानियत का फसल कब उगानी  है कब लगानी है इन सबका ज्ञान है , आयर्वेद का ज्ञान हे , प्रकर्ति का ज्ञान हे !!!


पर आज विकास की इस अंधी दौड़ में हम खेती की जमीनों पर कब्ज़ा करकर शोपिंग मोल और बिल्डिंग बना रहे हैं , जिससे एक दिन सभी किसान ख़त्म हो जायेंगे ?????????


इसीलिए मैंने कहा  था जब किसान ख़त्म हो जायेंगे तो रोटी और अन्न ख़त्म हो जायेगा और तब खाना लैपटॉप और कंप्यूटर !


और तब लैपटॉप आएंगे २ रुपये में और रोटी १ लाख में क्योंकि laptop के बिना इन्सान जी सकता है पर रोटी के बिना नहीं| आज  जनसँख्या इतनी बढ गई है के किसान को बढ़ावा मिलना चाहिए और खाने की वस्तुओं का उत्पादन और बढना चाहिए बल्कि हो उल्टा रहा है ! किसान कम हो रहे हैं वाह क्या विकास हो रहा है  !



कुछ समय पहले की बात है  गुडगाँव के सारे किसानो ने जमीने बिल्डर्स  को बेच दी और dlf और कई बड़ी कंपनियों ने वहां बिल्डिंगे बना दी  अब वो बेचारे नासमझ किसान जो अनपड़ हे , जब तक पैसा खर्च नहीं होता तब तक ऐश से रहेंगे बाद में भूखे मरेंगे और बिल्डर्स  ने तो अपना काम निकाल  लिया ,लेकिन उस हरयाणा की ज़मीन पर या नॉएडा के पास उत्तर प्रदेश की ज़मीन पर ,या महाराष्ट्र में मुंबई और पुणे के किसानो की ज़मीन पर जो खेत थे जो अन्न उगता था , सब ख़त्म, लाखो लोगो को जहा से अनाज मिल सकता था आज सब ख़त्म,........ अब खाओ शौपिंग माल और इंजीनियरिंग कालेज ??


और सबसे ज्यादा डर की बात अब यही हे के अब यही सब छोटे प्रदेशों में भी होने लगा है  मध्य प्रदेश में हो रहा है आज, भोपाल और इंदौर के पास की सारी ज़मीने बिल्डर्स  ने खरीद ली और यहाँ इंजीनियरिंग कॉलेज बना रहे है या कॉलोनियां बसा रहे हैं इसी तरह चलता रहा तो एक दिन सारे किसान मरेंगे फिर उनके बच्चे मरेंगे और फिर वो लोग जिन्हें खाने नहीं मिलेगा , और फिर ..............हम सब !

ये बिल्डर्स  और नेता तो करोरो रुपये लेकर निकल जायेंगे यहाँ से विदेश पर हम सबका क्या होगा??   क्या होगा इस देश की १०० करोड़ से ज्यादा जनता का ये हमें सोचना है !!!!

और यही मेरी चिंता का विषय है..................

हमे किसानो को रोकना होगा ज़मीने बेचने से उन्हें उनकी खोई इज्ज़त वापस दिलाना होगी, जिस तरह लाल बहादुर शास्त्री ने नारा दिया था जय जवान जय किसान, वैसे ही और किसानो को समझाना होगा, अपने बच्चो को किसान ही बनाये उन्हें सारी चीज़े हम गाँव में ही मुहैया करवाएंगे और उन्हें पढ़ाएंगे भी और इज्ज़त भी देंगे और इन धोखेबाज़ और खुनी बिल्डर्स  को रोकना होगा वरना ताकत और पैसे के नशे में चूर ये सारे देश को या तो विदेशियों के हाथों में बेच देंगे या बर्बाद कर देंगे और बना देंगे किसानो की लाशों पर बड़ी बड़ी इमारते !!

खेत और हरियाली ख़त्म होने से कई संकट है :-
1)हम और हमारे किसान भूखे मरेंगे |
2) global warming बढ़ेगी, पर्यावरण का नाश हो जायेगा  |
3) हमारी अर्थ व्यवस्था डूब जाएगी क्योंकि खेती पर निर्भर है |
4)और हमे विदेशों से खाने की वस्तुए मंगनी होगी सोचो जब वो लोग पेट्रोल और डीसल जिसके बिना हम जीवित रह सकते हैं इतना महंगा देते हैं हमे क्योंकि वो हमारे पास नहीं है और  उनके पास है तो .......

हमे खाना कितना महंगा देंगे ......सारे गरीब मर जायेंगे भुखमरी बढेगी 
और जो अमेरिका हमें जंग के समय हथियार देने पर या पैसा उधार देने पर इतनी शर्ते लगा देता है सोचो जब खाना मांगना पड़ गया तब कैसी शर्ते माननी पड़ेगी ....

यदि वो बोले गुलाम बन जाओ तो ....................शायद


इसे रोकना होगा ..........हम लोग इस दिशा में जनजाग्रति का कार्य कर रहे हैं , आप भी सहयोग करे और भारत के हर जिले में किसानो को समझाए और लोगो को क्योंकि अकेला किसान इन बड़े बिल्डर्स और कॉर्पोरेट घरानों से नहीं लड़ सकता जनता को उनका साथ देना होगा और रोकना होगा हमें अपने भ्रष्ट नेताओं को जो किसानो की या सरकारी जमीनों का सौदा चंद रुपये खा कर कर देते है ?????????????


जब भी आपके शहर में नयी कालोनी बन रही हो या शहर के बाहर कुछ कालेज या शौपिंग माल बन रहा हो !!!!!! तो एक बार सोचियेगा जरुर के ये विकास हो रहा है या विनाश हमेशा ये याद रखे "खाने के लिए रोटी की ज़रुरत होती है कंप्यूटर या लैपटॉप की नहीं"


और खेती के लिए जमीन की ज़रूरत होती हे शोपिंग माल की नहीं



जय हिंद जय भारत


आपका मित्र 
शुभम वर्मा 
theshubhamhindi@gmail.com

Thursday, February 13, 2014

वैलेंटाइन डे का सच / Reality of valentines Day

१४ फरवरी ,
 इसके एक हफ्ते पहले से लोग पागल होने लगते हैं रोज डे , किस डे,चोकलेट डे, वैलेंटाइन डे आदि और कुछ डाल अपने बांस के डंडो को तेल पिलाने लगते हैं इन्हें पीटने के लिए पर क्या ये दोनों ही जानते हैं के असल में ये वैलेंटाइन डे है क्या और कहाँ से शुरू हुआ?? क्या आप भी वैलेंटाइन डे मनाने वालों में से हैं ?? क्या आप भी लाठियों से इस दिन लोगो को पीटने वालों में से हैं ??  इसे जरुर पढ़िए  शायद आपके विचार इसे पढने के बाद बदल जाएँ , इसे इसलिए भी पढ़िए ताकि आगे से आपसे कोई वैलेंटाइन डे की असलियत पूछे तो आप बता सकें :-


इतिहास :-
रोमन साम्राज्य में एक राजा हुआ करता था क्लौदिअस और उसके समय में उनके चर्च का  यह मानना था के जो सैनिक शादी नहीं करते वो ज्यादा ताकतवर होते हैं तो उनकी प्रजा में राज घराने के अलावा किसी को भी शादी करने का हक नहीं था | कोई भी प्रेमी जोड़ा यदि बन जाये तथा शादी करने का सोचे और पता चल जाये तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाता था | तब एक चर्च के पादरी ने विरोध किया उसने कुछ जोड़ो की छुपकर शादी करवादी और जब यह बात सबको पता चली तब उसे गिरफ्तार करके यातनाएं देकर मार डाला गया उसका नाम था  संत वैलेंटाइन इसके बाद कई सालो तक विरोध चलता रहा फिर शादी करने वाले जोड़े उसकी याद में यह दिवस मनाकर विरोध करते रहे तब जाकर उन्हें शादी करने की आज़ादी प्राप्त हो पायी |

मुर्खता :-
अब हम भारतीय जो की सदियों से शादी करते आ रहे हैं भगवान राम , कृष्णा तथा सभी ऋषि मुनियों ने शादी की है तथा भारत में प्रेम दिवस के रूप में बसंत पंचमी और होली जैसे कई त्यौहार हैं जिनमे सारा समाज मिलजुलकर खुशियाँ मनाता है  फिर भारत में  मुर्खता पूर्ण तरीके से वैलेंटाइन को क्यों पूजा जा रहा है बस क्योंकि अँगरेज़ करते हैं तो हमें भी करना है क्योंकि वो ही हमारे माई बाप हैं वो देश छोड़ कर चले गए तो क्या हुआ अभी भी मानसिक रूप से तो हम उन्ही के गुलाम हैं | और हमारे माई बाप जो करेंगे हम तो अंध भक्ति में उसी का अनुसरण करेंगे सही है करो| इसी तरह के काले अंग्रेज लार्ड मेकाले बनाना चाहता था जो शरीर से भारतीय हों मगर मन और मानसिकता से अंग्रेजों की तरह सोचे ताकि कभी उनकी गुलामी से आज़ाद ना हो पायें | अफ़सोस के आज़ादी के पहले इतने काले अँगरेज़ नहीं थे जितने आज़ादी के बाद बन गए हैं | क्या आप अपने आपको वैज्ञानिक बुद्धि का  कहते हो क्या कभी जानने की कोशिश की के जो कर रहे हैं इसके पीछे का सच क्या है और क्यों कर रहे हैं अगर नहीं तो इसी तरह के पचासों दिवस साल भर मानकर अपनी गुलामी का सबूत देते रहिये  || या फिर जानिये इसके पीछे का असली सच :-

वैलेंटाइन डे के पीछे के मूल मकसद :-
इतने साल पुराने डे का आज क्या औचित्य था और वो भी अमेरिका के लिए जो खुद शादियाँ नहीं करते इसके पीछे का मूल कारण है विदेशी कंपनियां जो की इस दिन कार्ड , खिलौने,दिल वाले खिलौने, कंडोम , गर्भनिरोधक गोलियां , परफ्यूम , जहरीली चोकलेट जिनमे जानवरों का मॉस है , शराब ,  विषैले कोल्ड ड्रिंक , कपडे और इसी तरह के कई गिफ्ट के घटिया सामान बेचती हैं जिससे भारत के भोले भले नागरिकों  का लगभग हजारो करोड़ रुपया ये लोग भारत से  यूरोप और अमेरिका और आजकल चाइना ले जाते हैं और भारतियों के हाथ में थमा जाते हैं ..........वैलेंटाइन डे  का ठुल्लू  :) हाहाहा कितने बुद्धिमान और तर्कपूर्ण लोग है हमारे जो टीवी पर बहस करते हैं इसे मानना चाहिए ये प्रेम दिवस है | इन सभी मीडिया के अख़बारों और चैनलों को भी पैसे भेज दिए जाते हैं इसे और बड़ा चड़ा कर पेश करने के लिए ताकि प्यार में अंधे लोग इनका और अधिक सामान खरीदें और गिफ्ट दें ताकि भारत को और लूटा जा सके |
आजकल तो ७ दिन पहले से अजीब अजीब से दे मानने लगते हैं जिससे ये पैसा ७ गुणा बढ़कर जा रहा है जैसे की चोकलेट डे ( जिसमे जानवरों की हत्या करके उनकी चर्बी मिली गयी है search करें e 631) और किस डे जो छोटे छोटे बच्चों को बिगाड़ रहा है और धकेल रहा है सेक्स के अंधे कुए में |
कुछ मुर्ख लोग बोलते हैं इसे माता पिता से प्रेम भाई बहिन से प्रेम दोस्तों से प्रेम दिवस करके मनाते हैं और वो फिर इन्ही दुकानों पर जाकर यही सब गिफ्ट खरीद कर अपने इन लोगो में बाँटने लगते हैं अरे मूर्खों इस दिवस को मानाने की जरुरत ही क्या है ऐसा क्या है इस दिवस में आज तो काला दिवस होना चाहिए के देश का पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह ये कम्पनिया लूट कर ले जा रही हैं |

अब यह आपको तय करना है के आप किसके साथ हैं अश्लीलता पूर्ण प्रेम दिवस मानकर शराब पीजिये या जहरीली  कोल्ड ड्रिंक पिजिये और केक खाइए और विदेशी वस्तुए खरीद कर भारत का पैसा विदेश भेजिए ??

या फिर

ध्यान कीजिये हम उस भारत में रहते हैं जहाँ ७० करोड़ से ज्यादा लोग 20 रस प्रतिदिन या इससे भी कम  पर गुजारा करते हैं यदि भारत का पैसा भारत में रहेगा तो उनका कुछ भला हो सकेगा और त्याग दीजिये इन सभी विदेशी दिवसों को जो कॉर्पोरेट और बढ़ी कंपनियों के द्वारा रचे गए हैं याद रखिये जितनी ताकतवर बड़ी कंपनियां होंगी उतना ही कमजोर लोकतंत्र होगा ?

यदि आपको मेरी बातों में जरा सी भी सच्चाई लगती है तो इस ब्लॉग का लिंक कॉपी कर अपने सभी मित्रों को भेजे तथा पढाये तथा जिनपर नेट नहीं है उन्हें यह सब बाते बताएं और यदि आप किसी ऐसी चर्चा या टॉक शो का हिस्सा बनने जा रहे हैं जो इनलोगों ने आयोजित किया हो वह यह तर्क जरुर रखे |

धन्यवाद्

जय हिन्द जय भारत

आपका भाई :-
शुभम वर्मा ( अध्यक्ष स्वदेशी युवा स्वाभिमान , आज़ाद गुरुकुल )
theshubhamhindi@gmail.com