Wednesday, February 26, 2014

आदिवासी संस्कृति या आधुनिक विकास |

-: आदिवासियों की संस्कृति  :-

  आदिवासियों की खुदकी एक अपनी सभ्यता और संस्कृति है जिसमे वह जीते हैं | उनका एक तौर तरीका है , उनका रहन सहन खुदका है , भाषा है बोली है तथा अपना एक अलग तरीका है जीवन को जीने तथा समझने का , वो जिस हालत में हैं वो खुश हैं उनके अपने स्कूल या शिक्षा तंत्र हैं , उनके खुदके खेल या प्रथाएं हैं, खुदके ही देवी देवता हैं तथा खुद की ही परंपरा और सभ्यता है | इसी तरह सदियों से जंगल में रहते हुए उन्होंने खुद का ही एक स्वास्थ्य का या उपचार करने का तंत्र भी विकसित किया है जो की उन तथाकथित विकसित सभ्यताओं के तंत्र  से कही अधिक विकसित है जो विदेशी आक्रान्ताओं के हमलों से निरंतर बदलती रही हैं  | उनके स्वास्थ्य तंत्र में वो सर्पदंश , हड्डी जोड़ , कैंसर , मधुमेह , चर्मरोग इत्यादि जैंसी कई बीमारियों का इलाज करते हैं तथा इन सभी बीमारियों को जड़ से मिटा देने वाली अदभुत जड़ी बूटियां उनके पास जंगलों में मौजूद हैं |

                 
    अब दिक्कत कहाँ आ रही है , जब सब कुछ मौजूद है तो | दिक्कत है पड़े लिखे लोगों के साथ जिनसे ही हम जैंसा कोई पड़ा लिखा शहरी वहां पहुँचता है  - अपने अज्ञानवश कहिये या मुर्खतावश कहने लगता है के - ये तो पिछड़े हैं यहाँ स्कुल नहीं हैं, यहाँ शोपींग मोल नहीं हैं , यहाँ डॉक्टर नहीं हैं , कपडे नहीं है , टीवी नहीं है , सड़के नहीं हैं ये सब बहुत दुखी हैं | इनका विकास करना है , इनका विकास करना है यहाँ कंपनियां लाओ , डोक्टर लाओ, इन झोलाछाप वैद्यों को भगाओ, या जंगल काट के सीमेंट की सड़कें बनवाओ और यदि ये पढ़े लिखे महाशय थोड़े अमीर या रसूखदार हों तो सारी सरकारी मशीनरी इनकी सेवा करने में लग जाती है तथाकथित विकास करने ,और इससे होता ये है  के पहले जंगल काटते हैं ,फिर जड़ी बूटियां, फिर जानवर..... फिर कंपनियां आकर पर्यावरण तथा नदियों पर भी अपना कब्ज़ा जमा लेती हैं और उन्हें प्रदूषित कर देती हैं और हम अंग्रेजी स्कुल खोल कर बच्चों को भी उनकी सभ्यता और संस्कृति से दूर करके किसी बड़े शहर में बेरोजगार घुमने के लिए तैयार कर देते हैं फिर वहां जंगल में बनी कंपनियों में सारे शहर के पढ़े लिखे लोग रोजगार करते हैं, तथा जिनका विकास करने के लिए ये सब हुआ था वो ख़त्म हो जा जाते हैं या वहां से पलायन करने के लिए मजबूर हो जाते हैं |

क्या यही विकास है ?????

मुझे नहीं पता यदि आपको पता चले तो मुझे भी बताएं .............



शुभम वर्मा 

theshubhamhindi@gmail.com

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